एक बार स्वामी रामतीर्थ अमरीका में एक विशाल जनसमूह को सम्बोधित कर रहे थेI
तभी बीच में एक महिला ने उनसे प्रशन किया कि- 'आप कहते हैं कि आपने ईशवर
को देखा है, तो कृपया बताएं कि वह मिस्टर है, मिसेज है या मिस है?' स्वामी
जी ने मुस्कुरा कर उत्तर दिया कि ,' वह परमात्मा न तो मिस्टर है, न मिसेज
है, और न ही मिस हैI वह तो एक मिस्ट्री (रहस्य) हैI ऐसी मिस्ट्री जिसका उदघाटन
केवल मानव-तन रुपी प्रयोगशाला में ही हो सकता हैI और धर्म (ब्रह्मज्ञान) ही वह युकित
है, वह मार्ग है जो मानव-तन के भीतर प्रभु रुपी इस गूढ़ रहस्य को उद्धघाटित कर
सकता है, उसका साक्षात्कार करा सकता हैI
तभी बीच में एक महिला ने उनसे प्रशन किया कि- 'आप कहते हैं कि आपने ईशवर
को देखा है, तो कृपया बताएं कि वह मिस्टर है, मिसेज है या मिस है?' स्वामी
जी ने मुस्कुरा कर उत्तर दिया कि ,' वह परमात्मा न तो मिस्टर है, न मिसेज
है, और न ही मिस हैI वह तो एक मिस्ट्री (रहस्य) हैI ऐसी मिस्ट्री जिसका उदघाटन
केवल मानव-तन रुपी प्रयोगशाला में ही हो सकता हैI और धर्म (ब्रह्मज्ञान) ही वह युकित
है, वह मार्ग है जो मानव-तन के भीतर प्रभु रुपी इस गूढ़ रहस्य को उद्धघाटित कर
सकता है, उसका साक्षात्कार करा सकता हैI
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