प्रशन- गुरु महाराज जी ! जब आपके सेवक ज्ञान लेने के बाद साधना नहीं करते
तो क्या आपको दुःख होता है ?
उत्तर- (गुरु महाराज जी सेवक का ऐसा प्रशन सुन कर चुप कर गए) कुछ देर बाद
मोन तोड़ते हुए कहने लगे- हाँ मुझे बहुत दुःख होता है कि इसके पास इतना महान
ज्ञान है पर यह इसको विअर्थ गवा रहा है I हीरे को कोडीओं के भाव बेच रहा है I
जिस ज्ञान को हमारे ऋषि-मुनिओं ने भी घोर तप करके प्राप्त कीआ I वह ज्ञान
आपको सहजता से ही दे दीआ गया क्योंकि मुझे लगता था कि आप इसका मूल्य
जरुर पाओगे I परन्तु जब आप साधना नहीं करते तब मुझे बेहद दुःख होता है I
जब मैं आपको ज्ञान प्रदान करता हूँ तब मुझे लगता है कि मैं जो विशव-शांति
का लक्ष्य लेकर आया हूँ उसके अंदर दो कदम और बढ़ गए I पर जब ज्ञान लेकर
कोई साधना नहीं करता तब मुझे लगता है कि मेरी सारी मिहनत बेकार हो गई I
आप उस किसान की हालत का अंदाज़ा लगा के देखो जिसने खेत में हल चला के
बीज लगाए पर बड़ी मिहनत करने के बावजूद भी अगर खेत में बीज अंकुरित
ना हों तब किसान को उदासी होती है उस से भी करोड़ों गुणा ज्यादा मैं उदास हो
जाता हूँ क्योंकि किसान के पास तो फिर भी मोका है वो फिर से बीज लगा लेगा I
पर आप जानते हो के यह मनुष्य जनम एक मोका है और ज्ञान मिलना उस से
भी बड़ी उप्लब्दी I अगर आप सभी सहुल्तों के बावजूद भी अधूरे रह गए तो मेरा
उदास होना सुभाविक ही है I
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