Friday 18 January 2013

यह नैना रे, यह नैना रे


यह नैना  रे, यह  नैना  रे ...
याद  में  तेरी  रोए, तेरे  चरनों को  धोए,
झलक  इक्क पाने  को, दिल  का  दामन  भिगोए,
यह  नैना  रे , यह  नैना  रे ...

इन  आँखों  का  सपना  बन  जा, हर  पल  तुझको  देखें,
बंद  करें  यह  अपनी  पलकें, तेरे  ध्यान  को  लेके,
गहरी  नींदें  माया  की, ख्वाबों  में  कभी  ना आए,
हर  सुबह  आकर  के  सामने  इनको  तू  जगाए,
हर  घडी  तुमको  निहारे, तुम्ही  हो  जान  से  प्यारे,
बिना  तेरे  है  पतझड़, साथ  हो  तुम  तो  बहारें,
मेरे  नैनो  की  जुबां, प्रभु  तुमको  पुकारे,
यह  नैना  रे , यह  नैना  रे ...




इन  नैनों  के  भाग्य  जगेंगे, सोचा  ना  था  मेने,
तेरे  दर्शन  यह  करलेंगे, क्या  हैं  इनके  कहने,
रहती  है  इन  आँखों  में  अब  तो  तस्वीर  तुम्हारी,
जब-जब  देखें  तेरी  सूरत  जायें  तुझ  पर वारी,
जिधर  भी  यह  उठ  जाएं, उधर  यह  तुझको  पाएं,
बंद  हो  जायें अगर  यह,  नज़र  दिल  में  तू  आए,
जलवे  तेरे  हर  जगह, तेरे  बस  तेरे  पायें,
यह  नैना  रे , यह  नैना  रे ...

मेरे  नैना  तुझको  देखें , और  तू  देखे  मुझको,
इक्क  पल  मुझसे  दूर  ना  होना  कहते  हैं  यह  तुझको,
नज़रे  करम  ने  तेरी  मेरा  जीवन  सवर्ग  बनाया,
इन  नैनो  को  बिन  तेरे  कोई  दूजा  ना  भाया,
इनका  पाना  तुम्ही  हो , इनका  खोना  तुम्ही  हो,
इनका  जगना  तुम्ही  हो , इनका  सोना  तुम्ही  हो,
इनका  हसना  तुम्ही  हो , इनका  रोना  तुम्ही  हो,
यह  नैना  रे , यह  नैना  रे ...


यह नैना रे, यह नैना रे....

ਸਤਸੰਗਤਿ ਕੈਸੀ ਜਾਣੀਐ।। ਜਿਥੈ ਏਕੋ ਨਾਮੁ ਵਖਾਣੀਐ।।


‘ਸਤਿਸੰਗ’ ਜੇਕਰ ਇਸ ਸ਼ਬਦ ਨੂੰ ਸਮਝਣ ਦੀ ਕੋਸ਼ਿਸ਼ ਕਰੀਏ ਤਾਂ ਇਹ ਸ਼ਬਦ ‘ਸਤਿ’+'ਸੰਗ’ ਦੋ ਸ਼ਬਦਾਂ ਦਾ ਮੇਲ ਹੈ। ‘ਸਤਿ’ ਦਾ ਮਤਲਬ ਹੈ ਸੱਚ ਅਤੇ ਸੱਚ ਹੈ
ਪਰਮਾਤਮਾ ਅਤੇ ‘ਸੰਗ’ ਦਾ ਮਤਲਬ ਹੈ ਮਿਲਾਪ। ਇਸ ਲਈ ਸਤਿਸੰਗ ਦਾ ਮਤਲਬ ਹੈ ਸੱਚ (ਪਰਮਾਤਮਾ) ਦੇ ਨਾਲ ਮਿਲਾਪ ਹੋ ਜਾਣਾ।
ਸ੍ਰੀ ਗੁਰੂ ਗਰੰਥ ਸਾਹਿਬ ਜੀ ਦੇ ਅੰਦਰ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬਾਨ ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ-
ਮੇਰੇ ਮਾਧਉ ਜੀ ਸਤਸੰਗਤਿ ਮਿਲੇ ਸੁ ਤਰਿਆ।।
ਗੁਰ ਪਰਸਾਦਿ ਪਰਮ ਪਦੁ ਪਾਇਆ ਸੂਕੇ ਕਾਸਟ ਹਰਿਆ।।

ਸਾਹਿਬ ਸ੍ਰੀ ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਮਹਾਰਾਜ ਆਪਣੀ ਬਾਣੀ ਦੇ ਅੰਦਰ ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ ਕਿ ਹੇ ਪਰਮਾਤਮਾ! ਜੇਕਰ ਕਿਸੇ ਨੂੰ ਸਤਿਸੰਗ ਮਿਲ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ਤਾਂ ਉਹ ਤਰ ਜਾਂਦਾ ਹੈ। ਗੁਰੂ ਦੀ ਦਇਆ-ਮਿਹਰ ਦੇ ਦੁਆਰਾ ਪਰਮ ਗਤੀ ਨੂੰ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕਰ ਲੈਂਦਾ ਹੈ ਜਿਸ ਤਰਾਂ ਸੁੱਕੀ ਲੱਕੜ ਹਰੀ ਭਰੀ ਹੋ ਜਾਂਦੀ ਹੈ। ਇਸ ਲਈ ਸੰਤਾਂ-ਮਹਾਂਪੁਰਸ਼ਾਂ ਨੇ ਸਤਿਸੰਗ ਦੀ ਬਹੁਤ ਮਹਿਮਾ ਗਾਈ ਹੈ। ਪਰ ਅੱਜ ਦਾ ਇਨਸਾਨ ਸਤਿਸੰਗ ਦੀ ਪਰਿਭਾਸ਼ਾ ਤੋਂ ਅਨਜਾਣ ਹੈ ਕਿ ਸਤਿਸੰਗ ਕਿਸ ਨੂੰ ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ? ਹਰ ਇਨਸਾਨ ਤਕਰੀਬਨ ਇਹੀ ਧਾਰਨਾ ਰੱਖਦਾ ਹੈ ਕਿ ਜਿੱਥੇ ਕੁਝ ਲੋਕ ਇਕੱਠੇ ਹੋ ਗਏ ਤੇ ਪਰਮਾਤਮਾ ਦੀ ਚਰਚਾ ਜਾਂ ਕੋਈ ਕਥਾ ਕਰ ਲਈ, ਬਸ ਇਹੀ ਸਤਿਸੰਗ ਹੈ। ਪਰ ਸਾਹਿਬ ਸ੍ਰੀ ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਮਹਾਰਾਜ ਆਪਣੀ ਬਾਣੀ ਦੇ ਅੰਦਰ ਲਿਖਦੇ ਹਨ-
ਸਤਸੰਗਤਿ ਕੈਸੀ ਜਾਣੀਐ।। ਜਿਥੈ ਏਕੋ ਨਾਮੁ ਵਖਾਣੀਐ।।
ਏਕੋ ਨਾਮੁ ਹੁਕਮੁ ਹੈ ਨਾਨਕ ਸਤਿਗੁਰਿ ਦੀਆ ਬੁਝਾਇ ਜੀਉ।।

ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬਾਨ ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ, ਸਤਿਸੰਗਤ ਕਿਸ ਤਰਾਂ ਦੀ ਹੋਣੀ ਚਾਹੀਦੀ ਹੈ, ਜਿੱਥੇ ਕਿ ਪਰਮਾਤਮਾ ਦੇ ਉਸ ਇਕ ਨਾਮ ਨੂੰ ਦਿਖਾ ਦਿੱਤਾ ਜਾਂਦਾ ਹੋਵੇ। ਉਹ ਇਕ ਨਾਮ ਹੀ ਪਰਮਾਤਮਾ ਦਾ ਹੁਕਮ ਹੈ ਅਤੇ ਉਸ ਨਾਮ ਨੂੰ ਇਕ ਪੂਰਨ ਸਤਿਗੁਰੂ ਜਣਾ ਦਿੰਦਾ ਹੈ। ਇਸ ਲਈ ਸਾਡੇ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬਾਨ ਸਾਨੂੰ ਸਮਝਾਉਂਦੇ ਹੋਏ ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ ਕਿ ਜੇਕਰ ਜੀਵਨ ਦੇ ਅੰਦਰ ਕੋਈ ਇਨਸਾਨ ਸਤਿਸੰਗ ਦੀ ਪ੍ਰਾਪਤੀ ਕਰਨੀ ਚਾਹੁੰਦਾ ਹੈ ਤਾਂ ਉਸ ਨੂੰ ਇਕ ਪੂਰਨ ਸਤਿਗੁਰੂ ਦੀ ਸ਼ਰਨ ਦੇ ਅੰਦਰ ਜਾਣਾ ਪਵੇਗਾ।
  

*** ध्यान *** MEDITATION ***


पहली बात है लंबे समय तक का सतत अभ्यास बिना किसी रुकाव के | इसे याद रखना है | अगर तुम अपने अभ्यास का क्रम भंग करते हो , अगर तुम कुछ दिनों के लिए इसे करते हो और फिर कुछ दिनों के लिए इसे छोड़ देते हो , तो सारा प्रयत्न खो जाता है | फिर जब तुम शुरू करते हो दोबारा , तो फिर यह एक शुरुआत होती है |

अगर तुम ध्यान कर रहे हो और फिर तुम कहते हो की कुछ दिनों के लिए इसमें कोई फर्क नहीं पड़ता , यदि तुम सुस्त अनुभव करते हो , यदि तुम सोया अनुभव करते हो और तुम कहते हो , मैं इसे स्थगित कर सकता हूँ , मैं इसे कल कर सकता हूँ तो याद रखो कि एक दिन भी गंवाना बहुत दिनों के कार्य को विनंष्ठ कर देता है 

तुम उस दिन ध्यान नहीं कर रहे होगे , पर तुम दूसरी बहुत सी चीजे कर रहे होगे |वे दूसरी बहुत सारी चीजे तुम्हारे पुराने ढाँचे से सम्बन्ध रखती है , अत : एक तह निर्मित हो जाती है |तुम्हारा बीता कल तुम्हारे आने वाले कल से अलग हो जाता है |आज एक तह बन चुकी है , एक विभिन्न तह | निरंतरता खो गयी है |और जब तुम कल फिर से शुरू करते हो तो वह फिर एक शुरुआत होती है | मैंने बहुत से लोगो को देखा है प्रारम्भ करते , समाप्त करते , और फिर प्रारम्भ करते |वह काम जो महीनो में किया जा सकता था वे उसे करने में कई वर्ष लगा देते है |

तो इसे ध्यान में रखना है ---बिना व्यवधान के |जो कुछ भी तुम चुनो , उसे अपनी सारी जिंदगी के लिए चुनो | बस उस पर ही चोट करते जाओ | मन की मत सुनो | मन तुम्हे राजी करने की कोशिश करेगा| और मन बड़ा बहकाने वाला है | मन तुम्हे सब प्रकार के कारण दे सकता है - जैसे की आज तुम्हे अभ्यास नहीं करना चाहिए क्योंकि आज तुम बीमार अनुभव कर रहे हो ; या सर दर्द है और तुम रात को सो नहीं सके ; या तुम इतने ज्यादा थक चुके हो की यह अच्छा ही होगा की तुम आराम कर सको |लेकिन ये सब मन की चालाकिया है |

मन अपने पुराने ढाँचे पर चलना चाहता है | यह ज्यादा आसान है |और हर कोई ज्यादा आसान मार्ग पर चलना चाहता है , ज्यादा आसान दिशा में |मन के लिए आसान है -- पुराने के पीछे चलना | नया कठिन होता है |

मन हर उस चीज का विरोध करता है जो नयी है | तो अगर तुम प्रयोग में हो , अभ्यास में हो तो मन की मत सुनो , बस किये चले जाओ | धीरे - धीरे यह अभ्यास मन में गहरे उतर जाएगा | और मन इसका विरोध करना समाप्त कर देगा क्योंकि तब यह कही आसान हो जाएगा |





The first thing is continued practice for a long time without interruption. This has to be remembered.If you interrupt, if you do for some days and then leave for some days, the whole effort is lost. Andwhen you start again, it is again a beginning.

If you are meditating and then you say for a few days there is no problem, you feel lazy, you feellike sleeping in the morning, and you say, ”I can postpone, I can do it tomorrow,” – even one daymissed, you have undone the work of many days, because you are not doing meditation today, butyou will be doing many other things. Those many other things belong to your old pattern, so a layeris created. Your yesterday and your tomorrow is cut off. Today has become a layer, a different layer.The continuity is lost, and when tomorrow you start again it is again a beginning. I see many personsstarting, stopping, again starting. The work that can be done within months they take years.

So this is to be remembered: without interruption. Whatsoever practice you choose, then choose itfor your whole life, and just go on hammering on it, don’t listen to the mind. Mind will try to persuadeyou, and mind is a great seducer. It can give all kinds of reasons that today it is a must not to dobecause you are feeling ill, there is headache, you couldn’t sleep in the night, you have been somuch tired so you can just rest today. But these are tricks of the mind.

Mind wants to follow its old pattern. Why the mind wants to follow its old pattern? Because there isleast resistance; it is easier. And everybody wants to follow the easier path, the easier course. It iseasy for the mind just to follow the old. The new is difficult.



So mind resists everything that is new. If you are in practice, in abhyasa, don’t listen to the mind,you go on doing. By and by this new practice will go deep in the mind, and mind will stop resistingit because then it will become easier. Then for mind it will be an easy flow. Unless it becomes aneasy flow, don’t interrupt. You can undo a long effort by a little laziness.

***---***---गुरु वचन ---***---***


प्रशन- गुरु महाराज जी !  जब आपके सेवक ज्ञान लेने के बाद साधना नहीं करते

तो क्या आपको दुःख  होता है ?



उत्तर- (गुरु महाराज जी सेवक का ऐसा प्रशन सुन कर चुप कर गए) कुछ देर बाद

मोन तोड़ते हुए कहने लगे- हाँ मुझे बहुत दुःख होता है कि इसके पास इतना महान

ज्ञान है पर यह इसको विअर्थ गवा रहा है I  हीरे को कोडीओं के भाव बेच रहा है I  

जिस ज्ञान को हमारे ऋषि-मुनिओं ने भी घोर तप करके प्राप्त कीआ I वह ज्ञान 

आपको सहजता से ही दे दीआ गया क्योंकि मुझे लगता था कि आप इसका मूल्य

जरुर पाओगे I परन्तु जब आप साधना नहीं करते तब मुझे बेहद दुःख होता है I

जब मैं आपको ज्ञान प्रदान करता हूँ तब मुझे लगता है कि मैं जो विशव-शांति

का लक्ष्य लेकर आया हूँ उसके अंदर दो कदम और बढ़ गए I पर जब ज्ञान लेकर

कोई साधना नहीं करता तब मुझे लगता है कि मेरी सारी मिहनत बेकार हो गई I

आप उस किसान की हालत का अंदाज़ा लगा के देखो जिसने खेत में हल चला के

बीज लगाए पर बड़ी मिहनत करने के बावजूद भी अगर खेत में बीज अंकुरित 

ना हों तब किसान को उदासी होती है उस से भी करोड़ों गुणा ज्यादा मैं उदास हो

जाता हूँ क्योंकि किसान के पास तो फिर भी मोका है वो फिर से बीज लगा लेगा I

पर आप जानते हो के यह मनुष्य जनम एक मोका है और ज्ञान मिलना उस से

भी बड़ी उप्लब्दी I अगर आप सभी सहुल्तों के बावजूद भी अधूरे रह गए तो मेरा

उदास होना सुभाविक ही है I  


*****-----*****-----*****-----*****-----*****-----*****-----*****-----*****

Jaisi Drishti Vaisi Sharishti...


Ek Fakeer Pind de Bahar wale Raah te baitha c.. Ek Banda ayea te kehnda..

''..Baba., mai apna pind Shad k twade pind rehn ayea Haan.. Menu Das twade is Pind ch kistrah de Lok Rehnde ne..??

Fakeer ne ohnu puchea..'Tu jehra pind Shad k ayea hain., ohthe kistrah de Lok Rehnde c..??

Banda thore Gusse ch bolea..,'ji ohthe te bde Gande lok rehnde c.. Oh bde bure c..''

Fakeer bolea.,''.. Is Pind ch v Istrah de lok hi Rehnde ne..''

oh banda eh Gal Sun k Vapis chal gea..

5-10 min Baad ek Hor Banda ayea te fakeer nu puchea..

''..Baba., mai twade pind ch Rehn ayea Haan. Menu dso ehthe kis trah de lok rehnde ne.''

Fakeer ne ohnu puchea.,'..Tu jehra pind phelan Shad k ayea hain., ohthe kis trah de lok Rehnde c..''

Banda bde pyar nal bolea.,''..Ji ohthe te bde Changhe te pyar krn wale Lok Rehnde c..''

Fakeer ne keha.,''.. Is pind ch v bde chnghe lok Rehnde ne. Tusi is pind ch Reh Skde j.''

Banda Chal gea..

Fakeer de Kol Khda fakeer da chela bolea..''..Baba ji., jad pheln ek bande ne twanu puchea c ki is Pind ch kistrah de lok Rehnde ne.. Ta tusi keha c bde Gande.. Te hun jis bande ne puchea.. Tusi ohnu keha bde chnghe.. Ek ki Chkarr hai..??

Fakeer Hasea te bolea..

''..Banda Jis trah da aap hunda hai.. Ohnu Dunia v oho jehi hi disdi hai.. Phelan ayea Banda aap Ganda c.. Islai oh apna pind shad k ayea.. Te oh dunia de jehre mrzi pind ch chal jawe.. Ohnu Gande lok hi disne ne..

Hun jehra banda ayea c.. Oh aap chngha c.. Islai ohnu Sari dunia hi chnghi disdi hai..Dunia da koi Roop hi Hunda.. Eh changhe nu changhi te bure nu buri disdi hai..

ਭੂਲੇ ਮਾਰਗੁ ਜਿਨਹਿ ਬਤਾਇਆ॥ ਐਸਾ ਗੁਰੁ ਵਡਭਾਗੀ ਪਾਇਆ ॥੧


ਭੂਲੇ ਮਾਰਗੁ ਜਿਨਹਿ ਬਤਾਇਆ॥ ਐਸਾ ਗੁਰੁ ਵਡਭਾਗੀ ਪਾਇਆ ॥੧ (ਮਹਲਾ ੫/੮੦੩) 


 ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬਾਨ ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ ਕਿ ਅਜਿਹੇ ਲੋਕ ਬਹੁਤ ਹੀ ਵੱਡੇਭਾਗਾਂ ਵਾਲੇ ਹੁੰਦੇ ਹਨ ਜਿੰਨਾ ਨੂੰ ਗੁਰੂ ਨੇ ਭੁੱਲਿਆ ਰਸਤਾ ਦੱਸ ਦਿੱਤਾ|
ਕੀ ਅਸੀਂ ਕਦੇ ਸੋਚਿਆ ਹੈ ਕਿ ਉਹ ਰਸਤਾ ਕਿਹੜਾ ਹੈ ਜਿਹੜਾ ਅਸੀਂ ਭੁੱਲ ਗਏ ਹਾਂ ਅਤੇ ਜਿਸ ਨੂੰ ਗੁਰੂ ਦੁਬਾਰਾ ਜਣਾ ਦਿੰਦਾ ਹੈ? ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬਾਨ ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ -

ਲਿਵ ਛੁੜਕੀ ਲਗੀ ਤ੍ਰਿਸਨਾ ਮਾਇਆ ਅਮਰੁ ਵਰਤਾਇਆ ॥ਏਹ ਮਾਇਆ ਜਿਤੁ ਹਰਿ ਵਿਸਰੈ ਮੋਹੁ ਉਪਜੈ ਭਾਉ ਦੂਜਾ ਲਾਇਆ ॥ (ਮਹਲਾ ੩/੯੨੧) 

ਜਦੋਂ ਇਹ ਜੀਵ ਮਾਤਾ ਦੇ ਗਰਭ ਅੰਦਰ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ਤਾਂ ਉਦੋਂ ਇਸ ਦਾ ਧਿਆਨ ਪਰਮਾਤਮਾ ਦੇ ਨਾਲ ਜੁੜਿਆ ਹੋਇਆ ਹੁੰਦਾ ਹੈ| ਉਸ ਸਮੇਂ ਇਸ ਜੀਵ ਨੂੰ ਉਸ ਰਸਤੇ ਦੀ ਜਾਣਕਾਰੀ ਹੁੰਦੀ ਹੈ ਇਸ ਨੂੰ ਪਤਾ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ਕਿ ਇਸ ਰਸਤੇ ਉੱਪਰ ਚੱਲ ਕੇ ਹੀ ਮੈਂ ਆਪਣੀ ਮੰਜਿਲ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕਰ ਸਕਦਾ ਹਾਂ| ਪਰ ਜਦੋਂ ਹੀ ਇਹ ਜੀਵ ਸੰਸਾਰ ਤੇ ਜਨਮ ਲੈ ਲੈਂਦਾ ਹੈ ਤਾਂ ਇਹ ਉਸ ਮਾਰਗ ਨੂੰ ਭੁੱਲ ਜਾਂਦਾ ਹੈ| ਮਾਇਆ ਇਸ ਉੱਪਰ ਪ੍ਰਭਾਵ ਪਾ ਲੈਂਦੀ ਹੈ|ਸੰਤ ਮਹਾਂਪੁਰਸ਼ ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ ਕਿ ਇਹ ਜੀਵ ਉਸ ਰਸਤੇ ਨੂੰ ਆਪਣੀ ਬੁਧੀ ਦੁਆਰਾ ਨਹੀਂ ਖੋਜ ਸਕਦਾ ਕਿਉਂਕਿ ਓਹ ਰਸਤਾ ਮਨ ਬੁਧੀ ਤੋਂ ਪਰੇ ਹੈ| ਜੇਕਰ ਕੋਈ ਅਜਿਹਾ ਮਹਾਂਪੁਰਸ਼ ਮਿਲ ਜਾਵੇ ਜਿਹੜਾ ਉਸ ਰਸਤੇ ਬਾਰੇ ਜਾਣਦਾ ਹੋਵੇ ਉਹੀ ਇਸ ਨੂੰ ਉਸ ਰਸਤੇ ਦੀ ਜਾਣਕਾਰੀ ਦੇ ਸਕਦਾ ਹੈ|

ਕਹੈ ਨਾਨਕੁ ਗੁਰ ਪਰਸਾਦੀ ਜਿਨਾ ਲਿਵ ਲਾਗੀ ਤਿਨੀ ਵਿਚੇ ਮਾਇਆ ਪਾਇਆ ॥ (ਮਹਲਾ ੩/੯੨੧)